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बुधवार, 21 मई 2025

राम कथा हिंदी में लिखी हुई ram katha hindi || part-6

राम कथा हिंदी में लिखी हुई ram katha hindi || part-6

राम कथा हिंदी में लिखी हुई ram katha hindi || part-6

शिव-पार्वती विवाह: एक दिव्य गाथा

जब समस्त देवताओं ने श्रद्धा-पूर्ण स्वर में भगवान शंकर की अनुपम स्तुति की, तब करुणा के सागर शिव शंकर ने प्रकट होकर मधुर वाणी में पूछा, “हे देवगण! बताइए, किस कारण आप सभी मेरे समीप पधारे हैं?”

देवताओं ने हाथ जोड़कर निवेदन किया, “हे त्रिलोकनाथ! आप तो सर्वज्ञ हैं, अंतर्यामी हैं—हमारे आने का प्रयोजन आप भली-भांति जानते हैं। हमारी यही विनती है कि कृपा कर हमारे मनोरथ को पूर्ण कीजिए।"

देवताओं ने फिर आग्रहपूर्वक कहा,
"निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु।"
"हे प्रभु! हम अपनी आंखों से आपके शुभ विवाह का दिव्य दृश्य निहारना चाहते हैं। माता पार्वती जी ने तपस्या की अग्नि में स्वयं को तपाकर आपको पति रूप में पाने का व्रत लिया है। कृपया उनकी तपस्या को पूर्णता प्रदान कीजिए और उन्हें स्वीकार कीजिए।"

शिवजी ने देवताओं की प्रेमभरी प्रार्थना को हृदय में स्थान दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया, “जैसा तुम सभी चाहते हो, वैसा ही होगा।” यह सुनकर देवता आनंदित हो उठे, आकाश में दुंदुभियां गूंजने लगीं, पुष्पवर्षा होने लगी और शिवजी की जय-जयकार चारों दिशाओं में फैल गई।

तब देवताओं में एक संशय उत्पन्न हुआ। उन्होंने ब्रह्मा जी से पूछा, “जब शिवजी को विवाह करना ही था, तो उन्होंने कामदेव को भस्म क्यों कर दिया? विवाह में तो काम का बड़ा महत्व होता है।”
ब्रह्मा जी यह प्रश्न लेकर स्वयं महादेव के पास पहुंचे और शंका निवेदन की।

शिवजी मंद-मंद मुस्कुराए और उत्तर दिया, “हे ब्रह्मा जी, देवताओं से कहिए कि मेरे विवाह के लिए काम की आवश्यकता नहीं। जिनके विवाह में काम प्रेरक होता है, वे उसी से संचालित हों, किंतु मैं राम प्रेरित हूं। मेरे लिए राम का आदेश सर्वोपरि है—राम चाहिए, काम नहीं।”

उधर भगवान राम की प्रेरणा से सप्तर्षि कैलाश पहुंचे। शिवजी ने माता पार्वती की तपस्या की परीक्षा लेने हेतु उन्हें उनके पास भेजा। सप्तर्षियों ने शिवजी की प्रेरणा से माता पार्वती को कई प्रकार से विचलित करने का प्रयास किया। उन्होंने शिवजी को तपस्वी, भयावह, गृहस्थ जीवन के अयोग्य बताकर उन्हें किसी अन्य देवता से विवाह का सुझाव दिया।

मगर पार्वती जी अटल भाव से बोलीं—
"जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ शंभु न ता रहउँ कुमारी।।"
"मैं अनेक जन्मों से शिवजी को ही अपने पति रूप में वरण करने का संकल्प करती आई हूं। यदि वे न मिलें, तो जीवनभर कुमारी रहना स्वीकार है।"

माता की अद्वितीय निष्ठा और अडिग प्रेम देखकर सप्तर्षि भी अभिभूत हो गए। उन्होंने हिमवान और मैना देवी को यह संवाद सुनाया। समय बीतते ही विवाह का शुभ मुहूर्त निर्धारित हुआ। हिमाचल राज ने लग्न पत्रिका सप्तर्षियों को सौंपी, जो ब्रह्मा जी को प्रदान की गई। ब्रह्मा जी ने वह पत्रिका पढ़ी और समस्त ब्रह्मांड में उल्लास का संचार हो गया। दिशाओं में मंगल कलश सजाए गए, आकाश पुष्पवर्षा से आच्छादित हो उठा, और सभी देवता अपने विमानों को सुसज्जित करने लगे।

शिवगणों ने अपने स्वामी का अद्भुत श्रृंगार किया। भस्म से शरीर को विभूषित किया गया, बाघम्बर वस्त्र बना, सर्पों को आभूषणों की भांति सजाया गया। जटाएं मुकुट बन गईं, और मस्तक पर चंद्रमा शोभायमान हुआ।

"सिवहिं संभु गन करहिं सिंगारा।
जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा।।"

जब भगवान शंकर ने अपनी बारात की ओर दृष्टि डाली, तो वे स्वयं विस्मित रह गए—
कोई बिना मुख का था, किसी के अनेक मुख थे; किसी के अंग-विहीन शरीर थे, तो किसी के असंख्य भुजाएं। किसी की आंखें अधिक थीं, किसी की बिल्कुल नहीं। यह विचित्र दृश्य देखकर शिवजी बोले, “हे गणों! क्या तुम चाहते नहीं कि विवाह सफल हो?”
गणों ने मुस्कराकर उत्तर दिया, “हे प्रभु! जैसा दूल्हा वैसी बारात।”

"जस दूलहु तसि बनी बराता।
कौतुक बिबिध होहिं मग जाता।।"


जैसे ही शिवजी की बारात नगर के समीप पहुंची, हिमालय नगरी में सूचना पहुंची। नगर की स्त्रियाँ अत्यंत उत्सुक होकर बच्चों को भेजती हैं, "जा रे, देख आ शिवजी कैसे लगते हैं!"

बच्चे दौड़ते हुए जाते हैं, लेकिन बारात देखकर भयभीत हो लौटते हैं और कह उठते हैं—
"अरी मैया! यह बारात नहीं, कोई भूतों की फौज है। दूल्हा बैल पर बैठा है, सर्पों को गहनों की तरह पहने है, भस्म लपेटे नग्न घूम रहा है! शिवजी का रूप देखा, तो उनका हृदय भय से कांप उठा। वे रोने लगीं और कहने लगीं, "पार्वती तो रूपवती है, इसका वर ऐसा विकट क्यों?"

नारद मुनि ने उन्हें समझाया और बताया कि यह शिव का दिव्य रूप है। वे केवल देखने में भयानक हैं, भीतर से करुणा और प्रेम के सागर हैं।

इसके बाद विधिपूर्वक वैदिक रीति से शिव और पार्वती का दिव्य विवाह सम्पन्न हुआ। आकाश से पुष्पवर्षा होने लगी, नगाड़े बजने लगे, चारों ओर आनंद छा गया। अनेक दिनों तक बारात हिमाचल नगरी में रुकी रही।

जब विदा की घड़ी आई, तो मैना देवी ने शिवजी से प्रार्थना की—

"नाथ उमा मम प्रान सम गृहकिंकरी करेहु।
छमेहु सकल अपराध अब होइ प्रसन्न बरु देहु।।"

शिवजी ने सास को सान्त्वना दी और कहा कि वह पार्वती की सदा रक्षा करेंगे। तब मैना ने अपनी पुत्री को गोद में बिठाया, स्नेह से समझाया—
"हे पुत्री! शिवजी के चरणों की सेवा ही तेरा धर्म है, पति ही स्त्री का एकमात्र देवता है।"

पार्वती विदा हुईं। सारा वातावरण भावविभोर हो गया। पशु, पक्षी, मानव—सभी शोकाकुल हो उठे। शिवजी की आंखों से भी अश्रुधार बह निकली। यह भावपूर्ण क्षण नारी जीवन की वह रेखा है, जिसमें घर आंगन से एक युग का वियोग जुड़ा होता है।

राम कथा हिंदी में लिखी हुई ram katha hindi || part-6