राम कथा हिंदी में लिखी हुई ram katha hindi || part-1
परम सत्यस्वरूप, अखिल विश्व के आत्मरूप, पुरुषोत्तम श्रीराम—जिनमें समस्त सद्गुणों का वास है—जिनका सौंदर्य, माधुर्य और करुणा एक अक्षय सुधा-सागर के समान है, जो परम ब्रह्म हैं और त्रिलोक में सबसे सुखमय जीवन का स्रोत हैं—ऐसे श्री कौशल्यानंदन, अवधपति, श्री रघुनंदन को कोटिशः कोटिशः नमन।
और श्रीरामजी की परम प्रियतमा, जनकनंदिनी, भगवती जानकी—जिनका व्यक्तित्व दिव्यता का मूर्तिमान स्वरूप है, जो महाराज जनक की तपोमयी संतान हैं, जिनकी आँखों में ममता और धैर्य की अजस्र धारा प्रवाहित होती है, माँ सुनैना की चिर स्मृति और जनकपुर की वैभवमयी लता—ऐसी श्री वैदेही, श्रीराम प्राणवल्लभा जानकी जी को बारंबार साष्टांग वंदन।
इस युगल दिव्य युग्म—श्री सीताराम—के चरणों में मेरा हृदय नतमस्तक होकर बारंबार समर्पित होता है। साथ ही रामलला के चारों भ्राताओं और चारों माताओं को भी श्रद्धा के साथ प्रणाम। भक्त शिरोमणि, अनंत बल, अखंड श्रद्धा और सेवा के स्वरूप, श्री हनुमानजी महाराज के पावन चरणों में भी कोटि-कोटि वंदन।
हे श्रीरामकथा प्रेमी सज्जनों! यह हमारा परम सौभाग्य है कि हम सबने श्रीरामकथा के श्रवण का पवित्र संकल्प अपने जीवन में धारण किया है। यह दुर्लभ अवसर, अनेक जन्मों के संचित पुण्यों का परिणाम होता है। यह वही दिव्य पल है जब प्रभु की कृपा में भी कृपा जुड़ जाती है, जिसे संतजन 'विशेष कृपा' कहते हैं।
जैसा कि भगवान शंकर ने पार्वती माता से कहा:
"अति हरि कृपा जाहि पर होई।
पांव देइ एहि मारग सोई।"
सामान्य कृपा से धन, वैभव, पद और प्रतिष्ठा प्राप्त हो सकती है, परंतु श्रीराम की कथा—यह तो केवल 'विशेष कृपा' का प्रसाद है। हम सब इस अनुग्रह के अधिकारी बने, यही हमारे जीवन की सार्थकता है।
श्रीरामकथा की महिमा
श्रीरामकथा केवल एक गाथा नहीं, अपितु यह जीवन का वह प्रबुद्ध मार्ग है जो समस्त पापों का हरण करती है और कलियुग के संतापों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है:
"मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की।
रामकथा अनंत है। एक-एक अक्षर में पातक नाश करने की दिव्य क्षमता निहित है:
"चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
एकैक मक्षरं पुंसां महापातक नाशनम्।।"
रामायण शब्द स्वयं में ब्रह्मवाक्य है—"रामस्य चरितं यत्र अयनं तत्र रामायणम्"—जहां श्रीराम का चरित्र और जीवन का निवास है, वही रामायण है। यह शास्त्र वह द्वार है जिससे होकर श्रीराम की अनुभूति और प्राप्ति संभव होती है।
राम कथा का फल?
"सर्व पाप प्रशमनं दुष्ट ग्रह निवारणम्।"
नवग्रहों से परे एक और कृपा ग्रह है—राम ग्रह। जब यह कृपा ग्रह सक्रिय हो जाए, तो सभी शत्रु ग्रह निष्प्रभावी हो जाते हैं। रामकथा आत्मा का शोधन है, चित्त की दिशा बदलने का मार्ग है। यही कथा आनंद की स्थापना करती है—'कथा' शब्द ही इसका प्रमाण है—"का" अर्थात आनंद, "था" अर्थात स्थापना।
रामकथा केवल सुश्राव्य आख्यान नहीं, यह आत्मा को विषयों से मोड़कर भीतर की ओर ले जाने वाली दिव्य शक्ति है। यह जीवन के सभी रोगों, शोकों और अभिमानों का शमन करती है। यही वह कथा है जिसने श्रीराम को वनवास जैसे कठिन जीवन को भी सहज और हर्षपूर्ण बना दिया। जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों में अहंकार त्यागकर कार्य करता है, वही वास्तव में श्रीराम का अनुयायी है।
"राजीव लोचन राम चले।
तजि बाप को राजबराउ की नाईं।।"
रामकथा: सात कांडों की दिव्य यात्रा
पूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी ने मंगलाचरण के सात श्लोकों में रामायण के सात कांडों को अभिव्यक्त किया है—बालकांड, अयोध्या कांड, अरण्यकांड, किष्किंधा कांड, सुंदरकांड, लंका कांड और उत्तरकांड। यह सात अध्याय जीवन के सात सोपान हैं, जो दुखों के तमस से मुक्ति की ओर ले जाते हैं।
कथा का उत्स—श्री रामचरितमानस का प्रादुर्भाव
एक समय जब महान योगी नारद जी समस्त लोकों में भ्रमण करते हुए सत्यलोक पधारे, तो वहां उन्होंने वेदों से सुशोभित ब्रह्मा जी को साष्टांग प्रणाम कर भक्तिभाव से स्तुति की। उन्होंने ब्रह्मा जी से पूछा, “जब कलियुग में मानव धर्म और सत्य से विमुख होगा, तो उसका कल्याण कैसे संभव होगा?”
ब्रह्मा जी ने बताया कि एक समय भगवती पार्वती जी ने प्रभु श्रीराम के तत्व को जानने की इच्छा से शिवजी से प्रश्न किया था। तब शिवजी ने अपने मन में रचे गए श्रीरामचरित का रहस्य उन्हें बताया। यह वही अमूल्य रामायण है, जिसे शिवजी ने समय पाकर पार्वती को सुनाया था:
"रचि महेश निज मानस रखा।
पाइ सुसमय सिवा सनभाषा।।"
इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने लोकमंगल हेतु इस रामचरित को लोकभाषा में प्रस्तुत किया और इसका नाम रखा—"रामचरितमानस"।
यह कथा केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, जीवन का दर्पण है, जो बताती है कि कैसे सांसारिक उलझनों में रहकर भी हम आत्मिक आनंद से जीवन यापन कर सकते हैं। यह श्रीराम का पथ है—धैर्य, त्याग, मर्यादा और भक्ति का आदर्श मार्ग।