राम कथा हिंदी में लिखी हुई ram katha hindi || part-2
रामकथा – युगबोध की अमृतधारा (भाग-2)
यह कथा श्रवण और चिंतन के उन जिज्ञासु साधकों के लिए है जो न केवल सुनते हैं, वरन् उसे जीवन में उतारते भी हैं। जब भगवान श्रीराम ने यह दिव्य चरित्र काकभुशुण्डि को सुनाया, तब वह केवल श्रवण न था, वह अनुभव था। बाद में यही कथा काकभुशुण्डि ने याज्ञवल्क्य ऋषि को सुनाई और याज्ञवल्क्य ने भारद्वाज ऋषि को। इस प्रकार यह कथा गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से सनातन काल से आज तक बह रही है। तुलसीदासजी कहते हैं कि यह परंपरा यथावत आगे भी चलती रहेगी:
"औरउ जे हरि भगत सुजाना।
कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना।।"
अर्थात्, वे सभी हरिभक्त सज्जन इस कथा को अनेक विधियों से कहते, सुनते और समझते हैं।
भगवद्कथा का इतना सौभाग्य कैसे सिद्ध होता है? इसका प्रमाण यदि हम भागवत महापुराण से लें, तो वह अत्यंत मार्मिक दृष्टांत प्रस्तुत करता है। जब गंगा के तट पर शुकदेव जी राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाने जा रहे थे, उस समय देवता स्वर्ग का अमृत लेकर उनके पास आए और प्रस्ताव रखा—"आप राजा को यह अमृत पिलाइये और बदले में हमें वह अमृत रूपी कथा दे दीजिए।"
श्री शुकदेवजी ने मुस्कराकर कहा—"अरे देवताओं! तुम क्या हमें ठगने आए हो? कहां तुम्हारा अमृत जो मात्र देह को तृप्त करता है, और कहां यह श्रीहरिकथा, जो आत्मा को परम सुख देती है। तुम्हारे अमृत की तुलना उस कांच के टुकड़े से है जो चमकता तो है, पर मूल्यहीन है, और यह कथा अमूल्य रत्न है जिसकी कोई तुलना ही नहीं।"
इस प्रकार देवताओं को लौटा दिया गया और यह सिद्ध हुआ कि यह भगवद्कथा केवल परम कृपापात्रों को ही प्राप्त होती है। मनुष्य जन्म पाकर भी जब विशेष कृपा होती है, तभी यह सत्संग, यह अमृतकथा श्रवण का सौभाग्य मिलता है।
कलियुग का सच और साधना की सरलता
आज के इस कलियुग में जहां भोगवाद और उपभोक्तावाद चरम पर है, वहां एक ही चर्चा होती है – "अरे भाई! यह कलियुग है, भजन इतना आसान नहीं, साधना सहज नहीं।" युगों की साधना पद्धति में अंतर होता है। सतयुग में ध्यान, त्रेतायुग में यज्ञ, द्वापर में पूजा प्रमुख रही। परंतु कलियुग में साधना के पारंपरिक मार्ग कठिन हो चले हैं। बाबा तुलसीदास जी स्वयं स्वीकार करते हैं:
"एहि कलिकाल न साधन दूजा।
जोग जप तप व्रत पूजा।।"
अर्थात् योग, जप, तप, व्रत, पूजा आदि अब सहज नहीं रहे। तो फिर कलियुग के मनुष्य को क्या करना चाहिए?
तुलसीदास जी सरल समाधान देते हैं:
"रामहि सुमिरिय गाइय रामहिं।
संतत सुनिय राम गुन ग्रामहिं।।"
इस युग में राम का स्मरण, राम का कीर्तन और रामगुणों की कथा का श्रवण ही सहज साधना है। इसीलिए कथा के प्रथम दिन कथा की महिमा का वर्णन करना आवश्यक है – ताकि यह समझा जा सके कि कथा क्यों सुनी जाए? इसका लाभ, प्रयोजन और उद्देश्य क्या है?
कुछ लोग सोचते हैं कि रामायण तो हम पहले भी कई बार सुन चुके हैं, फिर बार-बार वही कथा क्यों? सच पूछिए तो रामकथा की सम्पूर्णता एक श्लोक में ही आ सकती है:
"आदौ राम तपोवनादि गमनं...
…पश्चाद्रावण कुम्भकर्ण हननमेतद्धि रामायणम्।।"
तो फिर विस्तार क्यों? क्योंकि हर बार यह कथा कुछ नया देती है – यह आत्मा का परिष्कार करती है, हृदय को निर्मल करती है। जीवन के हर मोड़ पर यह कथा नया अर्थ देती है। इसलिए यह पुनः पुनः श्रवणीय है।
विज्ञान की कसौटी पर कथा
यदि इस युग में विज्ञान की कसौटी पर बात करें, तो भी कथा का श्रवण एक विशुद्ध प्रक्रिया है। तुलसीदास जी मंगलाचरण में आदिकवि वाल्मीकि और श्रीहनुमान जी को "विशुद्ध विज्ञानी" कहकर प्रणाम करते हैं। आधुनिक शरीर विज्ञान भी कहता है—जो मुख से खाया जाता है, वह मल द्वारा निकलता है; परंतु जो कानों से ग्रहण होता है, वह मुख से ही निकलता है। इसीलिए जो व्यक्ति दुर्वचन सुनता है, वही बोलता भी है, और जो भगवद्कथा सुनता है, वही रामनाम मुख से उच्चारित करता है।
अतः कथा का श्रवण मात्र एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि का साधन है। जब हम श्रीराम कथा सुनते हैं, तो उसका परिणाम तत्काल मिलता है। "सुनतहिं सीता कर दुख भागा।" कथा दुख को धीरे-धीरे नहीं, अपितु दौड़कर भगाती है।
कथा श्रवण का फल
जो इस कथा को श्रद्धापूर्वक सुनते हैं, वह अमरत्व को प्राप्त करते हैं। मनुष्य की वाणी, उसकी बुद्धि और हृदय जब इस कथा में तल्लीन होते हैं, तब वह जीव ब्रह्ममय हो जाता है। यह कथा न केवल हमारे वर्तमान को दिशा देती है, बल्कि भविष्य का निर्माण भी करती है।
भजन - जय जय राम कथा, जय श्रीराम कथा।
बंधुओं, यह कथा केवल कथा नहीं, यह जीवन का सार है। यह हमें सिखाती है कि कैसे भगवान राम ने दुःख में भी संतुलन बनाए रखा, कैसे उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी धर्म का पालन किया। यह कथा केवल ज्ञान नहीं देती, यह जीव को मोक्ष के द्वार तक पहुंचाती है।
तो आइये, इस अमृत कथा का श्रवण करें, उसे हृदय में स्थान दें और अपने जीवन को श्रीराम के आदर्शों से आलोकित करें।