राम कथा हिंदी में लिखी हुई ram katha hindi || part-3
इस संसार को "दुःखालय" कहा गया है—दुःखों का घर। यहां हर प्राणी किसी न किसी रूप में पीड़ा से ग्रस्त है। यदि ऐसे वातावरण में भगवान की कथा सुनने मात्र से मन का दुःख दूर हो जाए, तो इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है, हे सज्जनो!
रामचरितमानस केवल एक ग्रंथ नहीं है जिसे पढ़ा जाए, यह तो एक गायन-शास्त्र है, एक काव्यगंगा है जो गाई जाती है, जिया जाता है। तुलसी बाबा ने मानस को छंदों, चौपाइयों, दोहों, सोरठाओं और संस्कृत श्लोकों में इस प्रकार रचा है कि प्रत्येक पंक्ति में लय है, राग है, भावों की संगीतमयी धारा है। यह ग्रंथ रचना नहीं, एक रस की अनुभूति है।
अब आप सोच सकते हैं—"हमें तो गाना आता नहीं!" या "गलती हो जाएगी तो क्या होगा?"… ऐसे विचार करना भी अनावश्यक है। क्योंकि तुलसीदास जी स्वयं लिखते हैं–
भाँय कुभाय अनख आलसहू।
नाम जपत मंगल दिसि दसहू।।
अर्थात्, भगवान का नाम चाहे आलस्यवश लिया जाए, चाहे अनमने भाव से, वह सदा ही शुभकारी होता है। इस 'आलस' शब्द का एक संकेत यह भी है कि कथा के समय जो नींद आती है, वह भी भगवद्-कृपा का एक रूप है। कथा की महफिल, उसका माहौल, उसका दिव्य कंपन इतना पवित्र होता है कि आत्मा विश्रांति की ओर चल पड़ती है, और शरीर को विश्राम चाहिए होता है। उस नींद के पीछे भी एक आध्यात्मिक कारण है—हमारे पाप जो कथा सुनने से घबराते हैं, वही नींद बनकर बाधा डालते हैं।
फिर भी, उस आलस में भी यदि कोई ‘राम-राम’ कह दे, तो भी लाभ होता है–
राम राम कहि जे जमुहाई।
तिनहि पाप पुंज समुहाई।।
अर्थात, जो जम्हाई लेते हुए भी राम नाम का उच्चारण करता है, उसके पाप भी पास नहीं फटकते। अतः राम नाम का स्मरण हर स्थिति में कल्याणकारी है—सोते, जागते, चलते, फिरते।
तन की मलिनता को तो हम साबुन, शैंपू आदि से धो सकते हैं, परंतु मन की कालिमा को केवल भगवान के नाम से ही धोया जा सकता है।
रघुबंस भूषन चरित यह नर कहहिं, सुनहिं, जे गावहिं।
कलिमल मनोमल धोइ बिनु श्रम राम धाम सिधावहिं।।
जो व्यक्ति रामजी के इस पावन चरित्र को सुनता है, गाता है या कहता है, वह बिना किसी प्रयास के अपने चित्त के कलियुगीन विकारों को धोकर श्रीराम के धाम को प्राप्त कर लेता है।
इतना ही नहीं, तुलसी बाबा आगे कहते हैं—
दारुण अबिद्या पंच जनित बिकार श्री रघुबर हरै।।
अर्थात, यदि कोई मनुष्य रामचरितमानस की केवल पांच-सात चौपाइयां भी प्रेमपूर्वक, श्रद्धापूर्वक अपने हृदय में धारण कर ले, तो श्रीरामजी उसकी सारी अविद्या और विकारों का नाश कर देते हैं।
इसलिए, हे सज्जनो, कथा न केवल सुननी चाहिए, वरन् गानी भी चाहिए। अब कुछ लोग पूछते हैं—"कथा सुनना तो ठीक है, लेकिन गाना क्यों?" इस प्रश्न का उत्तर भी तुलसी बाबा ने उदाहरण सहित दिया है।
गावत संतत शंभु भवानी।
अरु घट संभव मुनि विज्ञानी।।
अर्थात, जब स्वयं भगवान शंकर और माता पार्वती, जो इस सृष्टि के आद्य गृहस्थ हैं, कथा को गाते हैं, तो फिर हम जैसे साधारण गृहस्थों के लिए इससे बढ़कर कोई प्रमाण नहीं हो सकता।
यही कारण है कि राम कथा शिव कथा से प्रारंभ होती है। यह विरोधाभास नहीं, बल्कि एक गूढ़ संकेत है। मान लीजिए आपको कोई रोटी-सब्ज़ी खाने को बुलाए और दाल-चावल परोस दे, तो भ्रम उत्पन्न होगा। इसी प्रकार, ग्रंथ का नाम तो ‘रामचरितमानस’ है, लेकिन प्रारंभ होता है ‘शिव कथा’ से—यह सहज बुद्धि से परे प्रतीत हो सकता है।
परंतु इसका उत्तर भी तुलसीदास जी ने दिया है—
राम चरित मानस एहि नामा।
सुनत श्रवन पावइ विश्रामा।।
‘रामचरितमानस’ नाम से जो कथा है, उसका मूल उद्देश्य है श्रवणकर्ता को विश्राम देना—मन की शांति प्रदान करना। इस युग में सबके पास सुख-साधन हैं, परन्तु विश्राम नहीं है। यह विश्रांति केवल राम कथा के माध्यम से ही प्राप्त होती है।
अब एक अन्य जिज्ञासा यह उठ सकती है कि जब कथा सुनने से फल प्राप्त होता है, तो वह कब प्राप्त होगा? तो इसका भी उत्तर स्पष्ट है—तत्क्षण।
मज्जन फल पेखिय ततकाला।
काग होइ पिक, बकहू मराला।।
जैसे गंगा स्नान का फल तुरंत दिखाई देता है, वैसे ही राम कथा का प्रभाव भी तत्काल होता है। इसके प्रभाव से कौवा भी कोयल बन जाता है, बगुला भी हंस में परिवर्तित हो जाता है। यह है राम कथा की अद्भुत लीला।
अब, आप सोच सकते हैं कि यह राम कथा है, फिर इसकी शुरुआत शिव कथा से क्यों? इसका उत्तर यही है कि जब तक भगवान शिव की कथा न सुनी जाए, तब तक राम कथा के शुद्ध श्रवण की पात्रता नहीं बनती। जैसे किसी प्रतिष्ठित विद्यालय में प्रवेश से पहले परीक्षा होती है, वैसे ही राम कथा में प्रवेश से पूर्व ‘शिव कथा’ वह प्रवेश परीक्षा है।
अतः, राम कथा को केवल कथा नहीं, आत्मा का स्नान समझें। यह केवल चरित्रों की गाथा नहीं, यह हमारी आत्मा की यात्रा है, जो रामत्व की ओर अग्रसर होती है। यही है मानस की महिमा, यही है कथा का रहस्य।